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'राम सेतु' में अक्षय कुमार के नए लुक ने इंटरनेट पर मचाया धमाल, जानिए इस सेतु की पूरी कहानी

  आइए जानते हैं राम सेतु से जुड़े मिथक और वैज्ञानिक तथ्य...


अयोध्या: अक्षय कुमार की फिल्म राम सेतु इस वक्त सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है. दरअसल, अक्षय कुमार ने अपना नया लुक जारी किया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पहली बार नहीं है जब रामसेतु को लेकर कोई चर्चा चली हो. इससे पहले असली राम सेतु को लेकर कई किस्म की बातें हो चुकी हैं. आइए जानते हैं रामसेतु से जुड़े मिथक और वैज्ञानिक तथ्य...

रामसेतु को लेकर हमने अवध विश्वविद्यालय में कार्यरत इतिहासकार डॉ. देशराज उपाध्याय से बात की. डॉ. उपाध्याय भगवान राम के ऊपर कई किताबें लिख चुके हैं. राम सेतु को लेकर वह अपनी किताब सेतुबंध को लेकर चर्चा में रहे हैं. वह बताते हैं-

क्या है रामसेतु? 
श्रीलंका के पास मौजूद मन्नार की खाड़ी और भारत के रामेश्वरम् को जोड़ने वाले पुल को रामसेतु कहा जाता है. इसकी औसतन गहराई समुद्र की ऊपरी सतह से 4 फीट नीचे है. इसे ब्रिटिश दस्तावेजों में Adams Bridge का नाम दिया गया है. बताया जाता है कि ये पुल Z shape में बना है, जिसे समुद्र की तेज लहरों से निकलने वाली ऊर्जा बराबर बंट जाती है. और पुल पर कोई असर नहीं पड़ता.


सबसे पहले रामसेतु का जिक्र कहां मिला? 
रामसेतु का सबसे पहला जिक्र वाल्मिकी रामायण में मिलता है. इसके बाद से पूरी दुनिया में लिखी गई राम की कथाओं में इसका वर्णन है. हालांकि, सब जगह कुछ ना कुछ अंतर मिला है. इन कथानक के अनुसार,  भगवान राम ने अपने सेना को समुद्र पार कराने के लिए इस पुल का निर्माण कराया था. 

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कितने दिन में बना था राम सेतु?
दरअसल, अलग-अलग रामायण में इसकी अलग-अलग जानकारी मिलती है. कहीं 5 दिन है, तो कहीं 11-12 दिन. हालांकि, इतिहास की दृष्टि से इंडोनेशिया की 'रामायाण ककनिक' को अधिक प्रमाणिक माना जाता है. इसमें बताया गया है कि रामसेतु का निर्माण 5 दिन में किया गया था. 

क्या राम सेतु को इंसानों ने बनाया था या ये प्राकृतिक है?
इस विषय को लेकर लगातार बहस होती रही है. लेकिन अगर इतिहास के हिसाब से देखें, तो किसी कथानक का भौतिक प्रमाण मिले, तो उसे प्रमाणिक माना जाता है. राम कथा में सेतु का जिक्र मिलता है और उसका भौतिक प्रमाण रामसेतु या एडम बिज्र के रूप में उपलब्ध है. दूसरी बात ये है कि सेतु में जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया, वे समुद्री नहीं है. उसमें कुछ ऐसे पत्थर के अवशेष मिले हैं, जिनका संबंध निलगिरी और सतपुड़ा जैसे पहाड़ियों से है. इसके अलावा पत्थरों की उम्र उस बालू से भी ज्यादा है जिस पर वह टिकी है. इसका मतलब जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, वे किसी के द्वारा लाए गए हैं. 

गौरतलब है कि साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे में तब की सरकार ने कहा था कि ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं कि यह सेतु इंसानों द्वारा बनाया गया था. हालांकि, बाद में विरोध के बाद इसे वापस ले लिया गया था. 

फिर ये डूब कैसे गया? 
दरअसल, रामसेतु इंसानों के लिए बनाया ही नहीं गया था. अगर आप देखें, तो भगवान राम और लक्ष्मण को हनुमान और सुग्रीव ने कंधों पर उठा कर समुद्र पार कराया था. वहीं, ये बात भी ध्यान देने वाली है कि 'रामायाण ककनिक' में इस बात का जिक्र मिलता है कि जमीन पूरी तरह से समतल नहीं थी. कहीं, पानी गहरा था और कहीं काफी उथला. ऐसे में सेतु का निर्माण भी ऐसी ही किया गया. पुल बनाने से पहले लकड़ी का बेस बनाया गया. क्योंकि वह पानी में डूबती नहीं है. ऐसे तकनीक का इस्तेमाल ताजमहल में भी किया गया. शायद उस वक्त सेतु ऐसा ही था. 

विदेशी या यूरोपीय लोग इतिहासक क्या कहते हैं? 
डॉ. उपाध्याय ने बताया,'' नासा ने रामसेतु की सेटलाइट इमेज जारी की थी, जिसमें उसकी आकृति दिखती है. कई विदेशी इतिहासकार इसके अस्तिव को मान चुके हैं. ''
गौरतलब है कि साल 2017 में अमेरिकी भूगर्म वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट् सामने आई थी. जिसमें इस बात का दावा किया गया है कि भारत-श्रीलंका के बीच 30 मील के क्षेत्र में बालू की चट्टानें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं, लेकिन उन पर रखे गए पत्थर कहीं और से लाए गए प्रतीत होते हैं. इस दावे को रामसेतु के राम संबंध का प्रमाण माना जाता है.

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